रविवार, 22 जुलाई 2012

उसकी बूँदों में भीगने की दबी हसरत है...



उसकी आँखो से अभी झाँकती शरारत है,
उसकी बूंदो में भीगने की दबी हसरत है,


कैसा भीगा है समा भीगता है घर कैसा,
उससे मैंने ये कहा भीग लो न डर कैसा।


उसने मुझसे ये कहा अब मैं ये करूँ कैसे,
अब वो हालात नहीं हैं मैं ये बदलूँ कैसे।


तुम समझदार हो ये जानते नहीं तुम क्या,
अब मैं बच्ची तो नहीं मानते नहीं तुम क्या,


कैसे बतलाऊँ तुम्हें कितनी चुभन होती है,
मुझ पे हर पल तो ज़माने की नज़र रहती है।


अपने सीने में दबी बात दबा जाऊँगी,
अब तो लगता है ये हसरत न मिटा पाऊँगी,


मैं ये बोला के अजब बात किया करती हो,
कत्ल प्यारे से ये जज़्बात किया करती हो।


बेखुदी छोड़के खुद को ज़रा बहाल करो,
तुम जो अपना न करो मेरा ही ख्याल करो।


मेरी दुनिया में मेरी रूह की तस्कीन हो तुम,
मेरे सीने में मेरा दिल हो मेरी जान हो तुम।


अबके बारिश को तुम आँगन में ज़रा आने दो,
पाक बूँदों को जरा जिस्म भिगो जाने दो।


मैं तुम्हारा हूँ तुम्हारे लिये खुशियाँ चाहूँ,
तुमको तसकीन जो मिल जाये मैं खुश हो जाऊँ।


- इमरान खान ' ताईर '

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