सोमवार, 23 जुलाई 2012

नन्ही सी बूँद .



गयी हुई बारिश की 
दास्तान बाकी है ...
पत्ते पर टिकी हुई 
नन्ही सी बूँद में 
अभी भी जान बाकी है।


मुश्किल से रोके है 
खुद को फिसलने से, 
सूरज निकलेगा 
तब कैसे फिर रोकेगी 
अपने को जलने से ?


कुछ तो सोचती होगी 
ज़िन्दगी के बारे में,
जिन के साथ उतरी थी 
बादलों के दामन से... 
उन सभी के बारे में।


पत्ते के कोने में
दो घडी चमकने दो,
वो देखो - सूरज की 
लाल लाल आँखों ने 
देख ही लिया उसको !


किरणों के छूने पर 
हलकी सी थर्रायी ...
फिर क्या सोचा जाने,
सात रंग में चमकी...
जाते जाते मुस्काई।


कुछ देर पत्ते में 
बूँद की नमी रही...
सूरज जलता रहा...
नन्ही सी बूँद मगर 
अब कहीं नहीं रही।


         - मीता .





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