सोमवार, 6 अगस्त 2012

नींद ..सपनो की चारागाह



इक सफ़र 
जो जागे जागे पूरा नहीं होता 
मै कर लेती हूँ 
सपनो में 
मुझे नींद प्यारी है 
और नींद का  सफ़र अजीब होता है 
कल ही ढेर सारी घास 
खिलाते देखा एक मेमने को
चरवाहे की गोद में  [शुभ संकेत ] 
और देखा खुद को ..

एक सुन्दर सा बाग़ 
जिसमे झूम रही है डालियाँ 
नाच रहे है मोर 
चारों ओर फ़ैली रौशनी 
एक सुन्दर सी भोर 
हाथ बढ़ाता मुझ को सूरज 
खींचे अपनी ओर 
साथ साथ चलती घटायें
हवाएं 
धरा सम्हाले दिशाओं  का छोर 
मुझे क्यों लगता है 
मै उम्मीदों की पतंग हूँ 
और सूरज ने थाम रखी है डोर .

कभी देखूं 
मेरे बोये बीजों के बीच 
सूरजमुखी की 
कई पौध निकल आयी 
जो ढूंढें सूरज चहुँ दिशा
जिधर जाये सूरज 
चलें उसी ओर .

ये सपने...ये नींद..कभी ना टूटे.
कभी कभी ऐसा भी ....

सपनो का सच ..

एक रोज देखा 
'उस लड़की ' को 
जो दुपट्टे के कोने मोडती खड़ी थी 
किसी के इंतज़ार में 
आखिर इतनी दूर से कैसे पढ़ती आँखे !
जो हकीकत होती 
सपनो में मैंने पढ़ा 
सारा कुछ जो बयां कर सकती थी वो ...
और दर्द से भीग गयी आँखे .

मै रोकना चाहती थी 
मत जाओ 
ये रास्ता ठीक नहीं ...
पर नींद टूट गयी .

आज दिन भर 
एक पछतावा लेकर चलूंगी 
रात सपने में उसे तलाश करूंगी
मिल जाये तो कहूंगी  
प्यार छलावा नहीं होता .
पर 
उसे नहीं मिलने वाला 
उसका प्यार ...
सपने में मै भविष्य पढ़ लेती हूँ .

           - राजलक्ष्मी शर्मा .


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