इसी हसरत में मैंने कर लिया खूनाब आँखों को
के शायद नींद आ जाये मेरी बेख्वाब आँखों को .
उसी को देखना और बस उसी को देखते रहना
न जाने आयेंगे कब बज़्म के आदाब आँखों को ?
कोई भी दर्द का मौसम यहाँ यकसाँ नहीं रहता
कभी सहराँ सताते हैं, कभी सैलाब आँखों को .
मैं गहरी सोच में था और कोई भीगा हुआ लम्हा
न जाने कर गया फिर आ के कब सैराब आँखों को .
वो जिन में होश का हर इक सफीना डूब जाता है
कभी हम से भी तो मिलवाओ उन गिरदाब आँखों को .
अगर ताबीर से महरूम ही रहना था; शाद: इनको
तो फिर क्या सोच कर बख्शे गए हैं ख्वाब आँखों को .
- खुशबीर सिंह शाद .
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