रात
मेरी रूठी हुई नींद
मेरे पास आई थी ,
मैंने देखा
मेरी राह तकते तकते
पीला पड़ा था उस का माथा
बिखरे हुए थे बाल ,
बदहवास सी थी
मेरी नींद ,
एक
लम्बे अरसे के बाद
आज की रात
मुझे साकार पा
स्तब्ध थी ...
मेरी नींद .
अपलक ...
निहारती रही
दबी सहमी ,
स्नेहिल आँखों से
मेरे पायताने बैठी
मेरी अप्राप्य प्रेयसी
मैं
आज की रात फिर
जागता रह गया !
- अमित आनंद पाण्डेय .
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