मंगलवार, 4 सितंबर 2012

पगडण्डी में


पगडण्डी में मुझे भटकता वक़्त मिला,
जैसे मंदिर में कोई अज्ञानी भक्त मिला।

वही हौंसला जिससे थी परवाज़ कभी,
टूटा-फूटा फिर मुझको निःशक्त मिला।

दिल ने तो बस गीत,ग़ज़ल और शेर चुने,
बाकी तो ख़ुद में सब विरक्त मिला।

कई सिरफिरे अफ़साने भी लिख बैठे,
अफ़सानों के पीछे उबला रक्त मिला।

वो जिसपे कुछ उम्मीदें थीं ‘अनमोल’,
दुनिया के उन्माद में आसक्त मिला।।

-----करीम पठान ‘अनमोल’

1 टिप्पणी:

निंदक नियरे राखिये ने कहा…

आपका बहुत शुक्रिया..मेरी रचना पढ़ने और शेयर करने के लिये
हार्दिक आभार

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