सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

मुक्ति .


मुक्ति का जब कोई रास्ता नहीं मिला
मैं लिखने बैठ गया हूँ .

मैं लिखना चाहता हूँ 'पेड़'
यह जानते हुए कि लिखना पेड़ हो जाना है .
मैं लिखना चाहता हूँ 'पानी'.

'आदमी' 'आदमी' – मैं लिखना चाहता हूँ
एक बच्चे का हाथ
एक स्त्री का चेहरा
मैं पूरी ताकत के साथ
शब्दों को फेंकना चाहता हूँ आदमी की तरफ
यह जानते हुए कि आदमी का कुछ नहीं होगा
मैं भरी सड़क पर सुनना चाहता हूँ वह धमाका
जो शब्द और आदमी की टक्कर से पैदा होता है

यह जानते हुए कि लिखने से कुछ नहीं होगा
मैं लिखना चाहता हूँ।

- केदारनाथ सिंह .

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