नीरव निस्तब्धता में,
बिना किसी आहट के
देवदारों पर पड़ती
रुई के फाहे जैसी
बर्फ की तरह ...
कविता ... तुम झरना।
पानी से वाष्प हो ,
वाष्प से फिर पानी बन ,
पुनः पुनः ले जीवन ...
आदि से अंत तक ,
अंत से अनंत तक ,
उद्गम से संगम तक
तरंगिनी ... बहना।
तारकों में शशि जैसी ,
प्रखर ओज, तेजोमय
उदयमान रवि जैसी ,
अनजाने भावों सी ,
अनबोये पुहुपों सी ,
और कभी
अनचाहे शूलों सी उगना ...
सोये हुए अंतस में
कविता ... तुम चुभना।
काँटों भरे पथ पर
लहुलुहान पैरों से ,
किन्तु हताश नहीं ,
किंचित उदास नहीं ...
टिमटिमाती आँखों में
स्वप्नों के बीज लिए ,
सांस-सांस
आशा की लौ बन ...
कर जलना।
कविता तुम युगों तक
बिना रुके चलना।
- मीता .
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर ...बस कविता तुम बहना
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