सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

ए कविता ...


कितनी चंचल 
कितनी नटखट 
कभी करे दोस्ती
कभी खटपट 

कभी निस्तब्ध्ता 
कभी शोर 
कभी इस ओर  
कभी उस ओर 

कभी किनारे से बह जाती 
कभी हृद तक समाती 
कभी थामती  मुझे
कभी छोड़ कर दूर निकल जाती 

कभी शोख 
कभी उदासियाँ 
कभी सजग 
कभी ले उबासियाँ 

ऐ कविता .....
जितनी बार देखूं 
तुझे 
हर बार नया रूप 
सब सराहें 
कह 
क्या खूब क्या खूब .

- राजलक्ष्मी शर्मा .

1 टिप्पणी:

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति...

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