विद्युत् दीपों के प्रकाश में
स्नेह दीप बुझते जाते हैं।
अन्धकार के वक्षस्थल पर
आभा करती है अठखेली,
कोमल - कुंदन किरण कुमारी
कुतिया से चढ़ गयी हवेली !
झन - झन की झंकृति झंझा में ,
पावन स्वर उड़ते जाते हैं।
विद्युत् दीपों के प्रकाश में
स्नेह दीप बुझते जाते हैं।
नगर - नगर में जुड़ा हुआ है
स्नेह हीन दीपों का मेला !
दिशा - दिशा में घूम रहा है
दीप खोजने स्नेह अकेला !
ज्योतिर्जग के जगमग पथ पर
चरण - चिन्ह मिटते जाते हैं।
विद्युत् दीपों के प्रकाश में
स्नेह दीप बुझते जाते हैं।
चेतन जल के अंतराल से
जड़ चट्टानें उभर रही हैं ,
मन्त्रों की उषा नगरी में
यंत्रों की निशी विचर रही हैं !
अभिनन्दन के आडम्बर में
पूजा - पल घटते जाते हैं।
विद्युत् दीपों के प्रकाश में
स्नेह दीप बुझते जाते हैं।
- विपिन जोशी .
स्नेह दीप बुझते जाते हैं।
अन्धकार के वक्षस्थल पर
आभा करती है अठखेली,
कोमल - कुंदन किरण कुमारी
कुतिया से चढ़ गयी हवेली !
झन - झन की झंकृति झंझा में ,
पावन स्वर उड़ते जाते हैं।
विद्युत् दीपों के प्रकाश में
स्नेह दीप बुझते जाते हैं।
नगर - नगर में जुड़ा हुआ है
स्नेह हीन दीपों का मेला !
दिशा - दिशा में घूम रहा है
दीप खोजने स्नेह अकेला !
ज्योतिर्जग के जगमग पथ पर
चरण - चिन्ह मिटते जाते हैं।
विद्युत् दीपों के प्रकाश में
स्नेह दीप बुझते जाते हैं।
चेतन जल के अंतराल से
जड़ चट्टानें उभर रही हैं ,
मन्त्रों की उषा नगरी में
यंत्रों की निशी विचर रही हैं !
अभिनन्दन के आडम्बर में
पूजा - पल घटते जाते हैं।
विद्युत् दीपों के प्रकाश में
स्नेह दीप बुझते जाते हैं।
- विपिन जोशी .
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