गुरुवार, 8 नवंबर 2012

स्नेह दीप बुझते जाते हैं ...

विद्युत् दीपों के प्रकाश में
स्नेह दीप बुझते जाते हैं।

अन्धकार के वक्षस्थल पर
आभा करती है अठखेली,
कोमल - कुंदन किरण कुमारी
कुतिया से चढ़ गयी हवेली !
झन - झन की झंकृति झंझा में ,
पावन स्वर उड़ते जाते हैं।


विद्युत् दीपों के प्रकाश में
स्नेह दीप बुझते जाते हैं।

नगर - नगर में जुड़ा हुआ है
स्नेह हीन दीपों का मेला !
दिशा - दिशा में घूम रहा है
दीप खोजने स्नेह अकेला !
ज्योतिर्जग के जगमग पथ पर
चरण - चिन्ह मिटते जाते हैं।


विद्युत् दीपों के प्रकाश में
स्नेह दीप बुझते जाते हैं।

चेतन जल के अंतराल से
जड़ चट्टानें उभर रही हैं ,
मन्त्रों की उषा नगरी में
यंत्रों की निशी विचर रही हैं !
अभिनन्दन के आडम्बर में
पूजा - पल घटते जाते हैं।


विद्युत् दीपों के प्रकाश में
स्नेह दीप बुझते जाते हैं।

           - विपिन जोशी .





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