शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

अंतरदीप




एक दीप अंतस का तुम भी जला लो

सारा आकाश जगमगाता है इस अमा' की रात

मुझे भी याद आती है वो मीठी मीठी बात

तुम भी मेरे संग मुस्कुरा लो

एक दीप अंतस का तुम भी जला लो

बचपन के खुलते है कई बंद द्वार

जब मस्ती का नाम होता था त्यौहार

उन्ही यादों के द्वार तुम भी खटका लो

एक दीप अंतस का तुम भी जला लो

आज मेरे बच्चे करते है वैसा ही व्यव्हार

निश्चिन्त मन. छुट्टियाँ और ढेर सारा प्यार

शामिल हो के हम संग तुम भी गुनगुना लो

एक दीप अंतस का तुम भी जला लो

ये ठीक है हवाए तंग मौसम का साथ नहीं

कई परेशानियाँ है पर दुःख की कोई बात नहीं

आज सब बिसरा के उम्मीदों को गले लगा लो

एक दीप अंतस का तुम भी जला लो ...

-------- और -----------


आपकी 
एक एक मुस्कुराहट 
प्रेम  की 
भरोसे की 
और शुभेच्छाओं की 
और
देखिये 
वो पत्थर की दीवार 
रौशनी से झिलमिला उठीं .

------------ और ---------------

आस्था - दीप .

दीप आस्थाओं के जला लो 
आओ तुम दीपावली मना लो 

कण कण  रची श्रृष्टि ने नवीनता 
नवीन परिधान से खुद को सजा लो 

तम चीर कर रोशन करो चिराग 
अमा "की रात तुम जगमगा लो 

सबका मन कर दे सुगन्धित  
अंतर्मन में कुछ पुष्प खिला लो 

रूठ कर बैठे प्रिय मित्र को 
आज अपने घर बुला लो 

हर त्यौहार मीठे का रिवाज 
अपना मन  मीठा   बना लो

------------- और --------------

तुम हो ...

फुलझड़ी से ज्यादा 

तुम्हारी आँख चमकती है

स्पर्श बोलता है 

खुशियाँ महकती हैं

नए परिधान में आओ तो 

आँगन ऋतुएं उतरती है 

तुम नाराज़ हो 

तो 

तन जाता है काला शामियाना

खुश हो तो 

रौशनी बिखरती है ....:)

   
        - राजलक्ष्मी शर्मा .

                                 

         24/ 10 / 11 .

2 टिप्‍पणियां:

अनुपमा पाठक ने कहा…

अंतस में दीप जले तो क्या बात हो!
सुन्दर कविता!

नादिर खान ने कहा…

एक दीप अंतस का तुम भी जला लो

सारा आकाश जगमगाता है इस अमा' की रात

मुझे भी याद आती है वो मीठी मीठी बात

तुम भी मेरे संग मुस्कुरा लो

बहुत सुंदर रचना,दीपावली की शुभकामना ।

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