शुक्रवार, 9 नवंबर 2012


दीप मेरे जल तुझे है जूझना तम से , तिमिर से .

देख तुझ को नियति ने इस रूप में इस हेतु ढाला,
जल सके तुझ में भले ही क्षीण सी , पर ज्योति ज्वाला ,
सींचता जा ,सींचता जा , ज्योति को अपने रुधिर से .
दीप मेरे जल तुझे है जूझना तम से , तिमिर से .

मत समझ तू धूल मिट्टी से बना तो क्षुद्र है ,
क्षणिक जीवन हो तो क्या है , देख तुझ में रूद्र है ,
तू भला है तारकों की ज्योति हीना पंक्ति भर से .
दीप मेरे जल तुझे है जूझना तम से , तिमिर से .

है तेरी पूजा निरंतर प्राण को अपने गलाना ,
झेल पीड़ा दाह , श्वासों की अकम्पित लौ जलाना ,
अब न कोई राह भटके फिर अँधेरे की डगर से .
दीप मेरे जल तुझे है जूझना तम से , तिमिर से .

                - मीता .

        ( झरता हुआ मौन से )

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