बुधवार, 7 नवंबर 2012

दीवाली

सुबह:

   सुबह उठते ही
   आसमान में सूरज
   सावन का झूला झूलता
   अपने कानो पर फटाके लगाए
   ज़मीन को भी अपनी तपिश देता है..
   
   अम्मा, रंग फर्श पर बिखेर देती है
   प्रक्रति को अपने आँचल से निकाल
   कर आँगन में छोड़ती हुई ...

   छोटू,यहाँ वहाँ चींटियों
   को न्योता देता
   लड्डू के मोती गिराता
   हुआ


शाम..

 ढलती शाम ने आसमान में
 रंगोली बिखेर दी ..
 दीवाली उसे भी मनानी है

सूरज मुस्कराता हुआ
तारो को बुलाता हुआ
छुप गया उनसे आँख
मिचोली के लिए ...

रात :

  आसमान में आग लग गयी
  सागर ज़मीन से उपर की तरफ
  मूड गया ...
  समझ ना आए ये ज़मीन है
  या आसमान , रोशनी में
  जलते हुए ...

प्रेम :

    घर घर की दीवारे मीठी हो गयी
    नमक का पानी धूलकर बहा गया
    लगता है रंग रोगन, चाशनी से हुआ

    पड़ोस की छत अब सबकी है
    जो कल तक सिर्फ़ उनकी थी..

दर्द :

आसमान तक जाती
तेरी याद की रोशनी
यादो को ही रंग बिरंगा करके
अपने घर में छोड़ दिया ...

कड़वाहट को दिल से दूर कर
ज़ुबान को याद से मीठा बना दिया
तेरी यादो की ध्वनि की घंटी से
रब को शुकराना हो गया...

यादो के लिबास उतार कर
नयी यादे बना डाली ...

याद है दीवाली की रात को
ही तुम रोशनी के साथ
रोशनी बन गयी......

ग़रीब:

 घर आज भी वैसा ही है
 जैसा रोज़ था ...
 चाँद तो आज किसी का नहीं
 उसके घर भी आज दीवाली है...

  दीप नहीं, फूल नहीं , पूजा नहीं
  मेरे झोपड़ी के बाहर बस   रात काली है..........

देश :

रावण कई है आज भी
राम कही मिलता नही
लूट लिया अपनी ही सीता को
राम ने रावण बनके
अब दीप जले भी तो क्या ,
अंधेरे मन के तो जाते नहीं.


मगर फिर भी दीवाली उम्मीदो की है
गर्भ में पल रहा भविष्य सुंदर और स्वस्थ है
इसी उम्मीद के साथ दीवाली की सभी को शुभकामनाएँ .

           - नीलम समनानी चावला .

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