[बोहु दिन धोरे
बोहु क्रोश दूरे
बोहु व्यय कोरी
बोहु देश घूरे
देखिते गियाछी परबत माला
देखिते गियाछी शिन्धू
दैखा होई नहीं चोखू मेलिया
घर होते शुधू दू पा फेलिया
एक टी धानेर शीशेर ऊपर
एक टी शिशिर बिन्दु .]
बहुत दिनों तक
मीलों भटका
बहुत व्यय कर
कई देशों को देखा
ऊंचे पर्वतों को देखने गया
गहरे समन्दरों को सराहा
किन्तु देख न पाया आँखें खोल कर
अपने ही घर से दो कदम की दूरी पर
धान की एक बाली पर चमकती
ओस की बूँद के सौंदर्य को .
- रबिन्द्रनाथ टैगोर .
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