उस के साथ
एक नन्ही सी
मासूम सी लड़की
चला करती थी
उँगलियआँ थामे
जब भी वो " महल " से निकलता
वो साथ हो लेती .
आज वह
महल से दूर
" शहद" की बहती हुई
' नहरों " से खेलने गई
उस लड़की को
ढूंढ रहा है .
तलाश कर रहा है
बीती रातों के
हर उजालों में
उस का चेहरा !
जिंदगी बहुत आगे निकल गयी है
मगर
आज भी वह
महल के
उस कोने में खड़े
बैरी के पेड़ के करीब
उस मासूम सी लड़की को
ढूंढ रहा है
जहाँ वह
पहली बार मिली थी .
- खुर्शीद हयात .
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