मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

मैंने छोड़ दिया है .


आसमान में गहरा नीला तलाशना ,
और घास में मखमली हरा खोजना
मैंने कब का छोड़ दिया है .

चिड़ियों की चहकार में मिठास ढूंढना ,
सुबह की पहली किरण का संदेश पढना ,
पैरों के लिए पंख चुनना ,
दस्तक पर लपक कर खोलना दरवाज़ा ,
सपने बुनना ,
आवाजें सुनना ...
छोड़ दिया है अरसा हुए .

आसमान हल्का नीला भी बुरा नहीं ,
घास ज़रा भूरी ही सही ,
कोई बात नहीं ...
क्या हुआ कभी अगर
चिड़ियों की आवाज़ भी शोर हो जाती है ...
सुबह की पहली किरण अगर
आँखों में चुभती है ... नींद से जगाती है .

यों भी ,
पैरों में पंखों की गुंजाइश कहाँ है !
सपने खिलौने हैं ...
आवाजें धोखा ...
और , हर दस्तक परिचित हो
कतई ज़रूरी नहीं .

ऐसा तो नहीं कि तेरी प्यास नहीं है ...
पर जो है ,
उसी में खोज लिया ज़िन्दगी तुझको ,
जो नहीं है
उसकी मुझे तलाश नहीं है .

     - मीता .

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