हाँ , मै भटकती हूँ .
ऐसे दिनों की ...
जहाँ विषाद ना हो .
खुशियाँ जहाँ
बूंद बूंद बरसती हों ,
बूंद बूंद बरसती हों ,
लोग अपने मन की करते हैं
और कोई उन्हें टोकता नहीं ...
मुझे तलाश है
ऐसे जहाँ की -
जहाँ मै बैठ सकूँ
अपनी खुशियाँ समेट कर ,
कुछ देर अकेले ...
कर सकूँ हिसाब
आखिर इस दुनिया में आने का
मेरा प्रयोजन क्या है .
मुझे तलाश है
ऐसे लोगों की
जो मेरी तरह सोचते हैं ,
जो कल्पना और यथार्थ की दुनिया
का फर्क बखूबी समझते हैं .
मुझे तलाश है
ऐसे मंजरों की
जहाँ सारे लोग
बिना भेदभाव के साथ बैठते हैं
और दुनिया की बेहतरी सोचते हैं .
- राजलक्ष्मी शर्मा .
- राजलक्ष्मी शर्मा .
1 टिप्पणी:
बेशक, हम सबको तलाश है.....
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