मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

तलाश है ......


हाँ , मै भटकती हूँ .

मुझे तलाश है 
ऐसे दिनों की ...
जहाँ विषाद ना हो .
खुशियाँ जहाँ
बूंद बूंद बरसती हों ,
लोग अपने मन की करते हैं 
और कोई उन्हें टोकता नहीं ...

मुझे तलाश है 
ऐसे जहाँ की -
जहाँ मै बैठ सकूँ 
अपनी खुशियाँ समेट कर ,
कुछ देर अकेले ...
कर सकूँ हिसाब 
आखिर इस दुनिया में आने का 
मेरा प्रयोजन क्या है .

मुझे तलाश है 
ऐसे लोगों की 
जो मेरी तरह सोचते हैं ,
जो कल्पना और यथार्थ की दुनिया 
का फर्क बखूबी समझते हैं .

मुझे तलाश है 
ऐसे मंजरों की 
जहाँ सारे लोग 
बिना भेदभाव के साथ बैठते हैं 
और दुनिया की बेहतरी सोचते हैं .

          - राजलक्ष्मी शर्मा .

1 टिप्पणी:

नादिर खान ने कहा…

बेशक, हम सबको तलाश है.....

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