कल कुछ पन्ने हवा में
फड़ फडा रहे थे....
शायद कुछ कह रहे थे
अपनी ही बाते कर रहे होंगे
वो चंद पन्ने थे बस..
हवा में उड़ जाना चाहते थे
फ़ैल जाना चाहते थे हर कोने में
आसमान का कोई कोना नहीं न
परेशान थे वो बहुत..
किताबो का बंधन छूटता भी नहीं
और बँधकर जीना भी मुश्किल था
किताबें भी आजकल सोचती है
उड़ान भरने की .
पता है न उन्हे भी
इंसान मन से बौना हो गया है .
- नीलम सामनानी चावला .
फड़ फडा रहे थे....
शायद कुछ कह रहे थे
अपनी ही बाते कर रहे होंगे
वो चंद पन्ने थे बस..
हवा में उड़ जाना चाहते थे
फ़ैल जाना चाहते थे हर कोने में
आसमान का कोई कोना नहीं न
परेशान थे वो बहुत..
किताबो का बंधन छूटता भी नहीं
और बँधकर जीना भी मुश्किल था
किताबें भी आजकल सोचती है
उड़ान भरने की .
पता है न उन्हे भी
इंसान मन से बौना हो गया है .
- नीलम सामनानी चावला .
2 टिप्पणियां:
किताबें भी आजकल सोचती है
उड़ान भरने की .
पता है न उन्हे भी
इंसान मन से बौना हो गया है .
...बहुत खूब! बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
Shukriya Kailash SharmaJi :)
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