रविवार, 20 जनवरी 2013

एक और मैं .


मेरे अन्दर 
एक और मैं हूँ .
तुम जिसे देखते हो 
वो भी मैं हूँ , 
और मैं जिसे जानती हूँ 
वो भी .

एक आवाज़ है ,
जिसे तुम सुन पाते हो ;
और एक आवाज़ 
बस मुझे ही सुनाई देती है .
मैं तुम्हें नहीं सुना सकती ,
तुम डर जाओगे .
वो चिड़ियों की तरह ,
झरनों की तरह ,
पत्तों की सरसराहट की तरह ,
गा सकती है कहीं भी ,
कभी भी .

एक चेहरा है 
जो तुम्हें दिखता है ,
उम्र और थकान के निशानों के साथ .
और एक चेहरा
केवल मुझे दिखता है - 
सुन्दर , शफ्फाक़ , पुरनूर .
एक सूरज जैसा चेहरा . 
तुम देख मत लेना .
आँखें दुःख जायेंगी .

एक हंसी है 
जो तुम सुनते हो ,
और बहुत सी बातें हैं 
जो तुम करते हो मुझ से .
पर एक ख़ामोशी है 
जिसे सुनती हूँ केवल मैं .
करती हूँ अक्सर उस से बातें .
तुम उसे सुन कर क्या करोगे ?
समझोगे ही नहीं .

ज़िन्दगी जीने के लिए 
मैं जानती हूँ 
मुझे हमेशा वही रहना पड़ेगा 
जिसे तुम - 
देख , सुन , छू , समझ सको .
वो ' एक और मैं '
मेरे अकेले के हिस्से आई है .

             - मीता.

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