मेरे अन्दर
एक और मैं हूँ .
तुम जिसे देखते हो
वो भी मैं हूँ ,
और मैं जिसे जानती हूँ
वो भी .
एक आवाज़ है ,
जिसे तुम सुन पाते हो ;
और एक आवाज़
मैं तुम्हें नहीं सुना सकती ,
तुम डर जाओगे .
वो चिड़ियों की तरह ,
झरनों की तरह ,
पत्तों की सरसराहट की तरह ,
गा सकती है कहीं भी ,
कभी भी .
एक चेहरा है
जो तुम्हें दिखता है ,
उम्र और थकान के निशानों के साथ .
और एक चेहरा
केवल मुझे दिखता है -
सुन्दर , शफ्फाक़ , पुरनूर .
एक सूरज जैसा चेहरा .
तुम देख मत लेना .
आँखें दुःख जायेंगी .
एक हंसी है
जो तुम सुनते हो ,
और बहुत सी बातें हैं
जो तुम करते हो मुझ से .
पर एक ख़ामोशी है
जिसे सुनती हूँ केवल मैं .
करती हूँ अक्सर उस से बातें .
तुम उसे सुन कर क्या करोगे ?
समझोगे ही नहीं .
ज़िन्दगी जीने के लिए
मैं जानती हूँ
मुझे हमेशा वही रहना पड़ेगा
जिसे तुम -
देख , सुन , छू , समझ सको .
वो ' एक और मैं '
मेरे अकेले के हिस्से आई है .
- मीता.
- मीता.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें