रविवार, 27 जनवरी 2013

वह लड़की !

कई साल पहले
अपने छोटे से घर के 
पिछवाडे को खोदते
वो जार-जार रोई थी ,
अपनी काली बिल्ली को दफनाते ,
कुछ साल बाद अपनी टूटी गुड़िया  
के साथ बचपन की दोस्ती को भी ...
और चंद लम्हे अबोध बचपन के
उस काले शीशे के संदूक में .

आज भी ,रात को
उस करवट सोये आदमी
और बीच में सोये 
लडके के ऊपर से 
उड़ कर 
पहुँच जाती है वह 
उस मोड़ पे वापस
दफनाई कविता में
जहाँ सुलगती हैं यादें
बारिश में भीगे उसके बालों पर लिखी 
किसी की पंक्तियाँ
सूरज के रंग में लिपटे एहसास
एक बेटी का अंश जिसको
नाम देने से पहले ही
सूली चढ़ा दिया गया

कल्पना की उड़ान
चौके के धुंए में गश खा गयी ...
अब ,
वह खुद नहीं पहचान पाती
कि किस मोड़ पे खोयी 
वह लड़की !

- साधना .

5 टिप्‍पणियां:

शिवनाथ कुमार ने कहा…

संवेदनशील व मार्मिक रचना ...

Dinesh pareek ने कहा…

बहुत सवेदनशील रचना मार्मिक रचना

मेरी नई रचना

खुशबू


प्रेमविरह


vandana gupta ने कहा…

्भावप्रवण रचना

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत भावपूर्ण रचना...

अनु

Neeraj Neer ने कहा…

sundar aur marmik prastuti.
Neeraj 'neer'
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)

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