आज फिर शुरू हुआ जीवन .
आज मैंने एक छोटी सी ,सरल सी कविता पढ़ी ,
आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा ,
आज एक छोटी सी बच्ची किलक मेरे कंधे चढ़ी .
आज मैंने आदि से अंत तक एक पूरा गान किया .
आज फिर जीवन शुरू हुआ .
सोमवार, 28 जनवरी 2013
बेसन की सौंधी रोटी पर ...
माँ ... औरत का वह रूप है ,जो उसके भीतर बचपन से सांस लेता है , जो उसे सहेजना , समेटना , सम्हालना सिखाता है ... बचपन में नन्ही गुड़ियों को , फिर ज़िन्दगी को , रिश्तों को , परिवार को , अपनों को .... निदा फाजली जी की लिखी ये नज़्म सुनते हैं पंकज उधास जी की आवाज़ में और रूबरू होते हैं औरत के इस गरिमामयी रूप से -
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