सोमवार, 14 जनवरी 2013

सोचता हूँ .

सोचता हूँ कि मुहब्बत से किनारा कर लूं
दिल को बेगाना ए तरगिब ओ तमन्ना कर लूं .

सोचता हूँ कि मुहब्बत है जुनूं ए रसवा
चंद बेकार से बेहूदा ख्यालों का हुजूम
एक आज़ाद को पाबन्द बनाने की हवस
एक बेगाने को अपनाने की शै ए मौहूम .

सोचता हूँ कि मुहब्बत पे कड़ी शर्तें हैं
इस तमाद्दुम में मसर्रत पे बड़ी शर्तें हैं ...
पर
सोचता हूँ कि मुहब्बत है सुरूर ए मस्ती
इसकी तनवीर में रौशन है फ़ज़ा ए हस्ती

सोचता हूँ कि मुहब्बत है बशर की फितरत
इसका मिट जाना , मिटा देना बहुत मुश्किल है
सोचता हूँ कि मुहब्बत से है ताबिंदा हयात
आप ये शमा बुझा देना बहुत मुश्किल है .

- साहिर लुधियानवी .

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