सोचती हूँ कौन हूँ मैं ?
एक सूखी सी नदी का घाट हूँ मैं
हर किनारे तोड़ कर बह चली
पुन्य सलिला का बिखरता पाट हूँ
रास हूँ मैं रंग हूँ
स्वार्थ अवसरवादिता पर
टिका सम्बन्ध हूँ
नहीं !!!
भोर की पहली किरण सा
ओस की मीठी छुवन सा
अनकहा सा अनसुना सा
मखमली अनुबंध हूँ मैं
x-x-x-x-x-x-x
मैं नदी की धार हूँ
बह जाउंगी
भले ही हो नुकीले,
पाषाण तुम
बींधते
मेरा ह्रदय हो
जहाँ से जब छुंउंगी
हर किनारे
काट कर
वर्तुलाकृति सरलता दे जाउंगी|
-मृदुला शुक्ला
एक सूखी सी नदी का घाट हूँ मैं
हर किनारे तोड़ कर बह चली
पुन्य सलिला का बिखरता पाट हूँ
रास हूँ मैं रंग हूँ
स्वार्थ अवसरवादिता पर
टिका सम्बन्ध हूँ
नहीं !!!
भोर की पहली किरण सा
ओस की मीठी छुवन सा
अनकहा सा अनसुना सा
मखमली अनुबंध हूँ मैं
x-x-x-x-x-x-x
मैं नदी की धार हूँ
बह जाउंगी
भले ही हो नुकीले,
पाषाण तुम
बींधते
मेरा ह्रदय हो
जहाँ से जब छुंउंगी
हर किनारे
काट कर
वर्तुलाकृति सरलता दे जाउंगी|
-मृदुला शुक्ला
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