बोझ से झुकती है वह
पत्थरों के कठोर बोझ से
मैदान की आँखों में
और धरती की आँखों में
समूचे दृश्य में घूमती है वह
सीमेंट और गारे को
मालिक के मकान तक धोती हुई
वह बोझ से झुकती है
ज़िन्दगी के सूखते
आंसुओं के बोझ से
अपने कपड़ों से बाँध कर
ढोती है वह अपने बच्चे को
मालिक के मकान तक
गुनगुनाती हुई .
- ज़ोओ अबेल .
लुआंडा, अंगोला के कवि .
पत्थरों के कठोर बोझ से
मैदान की आँखों में
और धरती की आँखों में
समूचे दृश्य में घूमती है वह
सीमेंट और गारे को
मालिक के मकान तक धोती हुई
वह बोझ से झुकती है
ज़िन्दगी के सूखते
आंसुओं के बोझ से
अपने कपड़ों से बाँध कर
ढोती है वह अपने बच्चे को
मालिक के मकान तक
गुनगुनाती हुई .
- ज़ोओ अबेल .
लुआंडा, अंगोला के कवि .
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