रविवार, 24 फ़रवरी 2013

बाजी के जन्म पर कुछ वाक्य

तुम आयीं तब दरवाज़े बंद थे 
और गलियों में सन्नाटा था 
अन्धकार की चौखट पर 
कल रात जलाए गए दिए बुझ चुके थे 
और सूर्योदय में अभी देर थी .

भोर के पहले पक्षी की आवाज़ की तरह 
तुम्हारी पहली आवाज़ 
रात्रि  के अंतिम पहर के सुनसान में .

पतझर बस अभी गया था 
बसंत बस अभी आया था 
दो ऋतुओं के बीच 
तीसरी ऋतू की तरह तुम्हारा शुरू होना था 

तुम आयीं पवन के अनंत स्वरों में 
शामिल करने अपना भी स्वर 
तुम आयीं धरती के अनंत कपास से 
बुनने अपने भी धागे 

भोर के किवाड़ में 
सांकल की तरह बजी 
तुम्हारी पहली आवाज़ 

तुम आयीं तब दरवाज़े बंद थे .

- एकांत श्रीवास्तव .


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