गुरुवार, 7 मार्च 2013

रुको स्त्री, अभिमन्यु मत बनो



रुको स्त्री
अभिमन्यु मत बनो
मात्र साह्स से नहीं तोड़ सकोगी तुम
द्रोण रुपी गुरु समाज का रचा चक्रव्यूह
द्रोण को जानती हो ना तुम
सरकार ने जिसे अधिकारिक गुरु का दर्जा दे दिया है
स्मरण करो उस द्रोण को
की एकलव्य का हुनर छीन लेने वाला
कैसा गुरु रहा होगा
और द्रोपदी चीरहरण पर
कैसे खामोश रह सकता था कोई गुरु
उसी गुरु ने खड़े कर रखे हैं
खापी योद्धा
अपनी व्यूह रचना के हर मुहाने पर
वे नहीं हिलने देंगे तिल भर भी
तुम्हारे संगी और अंगी भीम तक को भी
ना ही उसके भाईयों को
तुम अकेले ही
कैसे पार कर पाओगी
एक कुटिल गुरु की सम्पूरण व्यूह रचना
सब जानते हैं बेशक
की तुम खुद में ही हो अद्भुत साह्स का नमूना
वे भी जो बाहर रह गये हैं
और वे तो निश्चित ही जो भीतर तुम्हे घेरने को खड़े हैं मुस्तैद
मगर साह्स किस पर आजमाओगी स्त्री
जब खुद ही घिर जाओगी दूसरे घेरे में
की भीतर भी तो अपने ही हैं
छोड़ दो अभिमन्यु बनना हे स्त्री
अब तुम भी एक गीता रचो
कि घेरो के घेरे से
अपनों के फेरे से
कैसे पार पाए स्त्री .

- वीरेंद्र भाटिया .

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