गुरुवार, 7 मार्च 2013

स्त्री!

स्त्री!

तुम ................

संबोधनों के पार हो / सरल हो सलिल सी
गूढ़ कविता सी जटिल भी

स्त्री तुम
आरती के दीये का रहस्य हो / अजान हो तुम मगरिब की।

--------------------------------------------------------

स्त्री !
तुम -भोग्या / चंचला /रमणी
हाँ पर तुम्ही -आराध्या / शक्ति और लक्ष्मी भी

स्त्री !
तुम ही उठो

जाग्रत होवो
निकल आओ आपने आत्म्केंद्रन से

और
बताओ
क्या हो तुम

आकुल सृष्टि आतुर हो तुम्हे व्यक्त होते देखना चाहती है!

(सृष्टि भी स्त्री ही शेष है अब तक )


- अमित आनंद .

कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...