बुधवार, 6 मार्च 2013

जिंदा है अभी औरत .

बावजूद इसके कि
दी गयी अफीम उसे पैदा होते ही
कंठ पर धर दिया अंगूठा बाप ने
दादी और बुआ ने गालियां दीं
माँ को पत्थर जनने की .

नहीं बजी थाली
नहीं गाये गए सौहर के गीत
आ पड़ी बाप की छाती पर
अयाचित मातम सी

बिना किसी घुट्टी , ब्रांडी या दूध के
झेल गयी जाड़े कितने
चढ़ आई बेल सी
बाप की आँखों में काँटों सी गड़ती रही

जली , जला दी गयी
कूद पड़ी कुएं में
भरी जवानी में

फिर भी करामाती ये फीनिक्स
जिंदा है अपनी ही राख से
मौजूद है ये नखलिस्तान
ज़िन्दगी के बियाबान में

खारे तूम्बे सी साँसों को चुभलाते हुए
घीया सुपारी सी
मौजूद रहती है मुंह में
किरच किरच हो कर भी
जिंदा है
हाँ , जिंदा है अभी औरत .

- अश्वनी शर्मा .

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