तुम पर प्रेम कविता लिखना इतना आसान तो नहीं
घटनाक्रम जुड़ता ही नहीं
और शर्त यह कि नहीं हो कोई बात पुरानी
स्वाभाविक बाध्यता कि दुहराव न हो
तुमपर कविता का प्रारम्भ तुम्हारी हंसी से हो
फिर बात हो तुम्हारी हथेलियों की
इरेज कर दिया जाए तुम्हारी हथेली का शुक्र पर्वत
प्रेम को देह के दायरे से खेंच लूँ सायास
कनिष्ठा के नीचे एक गहरी लकीर खींच दूँ
कविता में लाया जाए तुम्हारे आंसुओं का बहाव
आँखों के ठीक नीचे एक मिट्टी बाँध जोड़ दूँ
तिर्यक मोड़ से जब जब गुजरे नदी
बात तुम्हारे अल्हडपन की हो
अपने होठों में दबाकर तुम्हारे सीत्कार के शब्द
कविता में ही हो बात उस अंगडाई की भी
तुम पर प्रेम कविता लिखना इतना आसान तो नहीं
इस कविता के मध्य में बादलों की बात हो
तुम्हारे आँचल की गंध और आवश्यकता से बड़े उस चाँद का बिम्ब हो
खूब जोर से बहाई जाये ठंडी तेज हवा
तुम्हारे सिहरने को शब्दों में दर्ज किया जाए
मध्य में ही लाई जाए तीन तारों की कहानी
कम्पास से मापकर
अक्षरों में एक समबाहु त्रिभुज बनाया जाए
अंगुली के पोर से
अंत नहीं होगा कोई इस कविता का
अधूरी ही रखी जाये यह पूरी अभिव्यक्ति
अतृप्त ही रहे तमाम ख्वाहिशें
लबों का गीलापन वाष्पित न हो
हवा में तैरने का सिलसिला शब्द जारी रखें
क्षितिज की नींव पर ढाई पदचिन्ह टांकती रहेगी यह कविता
फिन्गर्ज़ क्रोस्स्ड !!
तुम पर प्रेम कविता में करूँगा
'भी' निपात का खुलकर प्रयोग
तुम पर प्रेम कविता लिखना इतना आसान 'भी' नहीं .
- शायक आलोक .
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