रविवार, 12 मई 2013

अम्मा


चिंतन दर्शन जीवन सर्जन रूह नज़र पर छायी अम्मा
सारे घर का शोर शराबा सूनापन तन्हाई अम्मा .

उसने खुद को खोकर मुझ में एक नया आकार लिया है
धरती अम्बर आग हवा जल जैसी ही सच्चाई अम्मा .

सारे रिश्ते जेठ-दुपहरी गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समंदर भीनी सी पुरवाई अम्मा .

घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती थी जाने कब तुरपाई अम्मा .

बाबू जी गुजरे, आपस में सब चीज़ें तकसीम हुईं
मैं घर में सब से छोटा था, मेरे हिस्से आई अम्मा .

- आलोक श्रीवास्तव .

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