मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

नया दिन...!

हर दिन
एक सा होता है...
वही दोहराव देख
मन कितना रोता है...

वैसे ही
चलता जाता है क्रम...
बढ़ते ही जाते हैं
अन्यान्य भ्रम...

कितनी तो
विवश हैं राहें...
कोई नहीं थामता
किसी की बाहें...

ज़िन्दगी हर दिन
ढलती शाम हो जाती है...
गम की आंधियां
बहुत सताती हैं...

प्रेम कहीं कोहरे में
ओझल होता है...
मैं तुम के द्वन्द में
मन बोझल होता है...

बादल
नए गगन की तलाश में
नयी राह पकड़ते हैं...
अजीब स्थिति है,
एक दूसरे के पूरक होकर
मन-मस्तिष्क आपस में खूब झगड़ते हैं...

ये सब
दिन भर
चलता रहता है...
पर ये भी सच है
हर रात के बाद
एक नया दिन निकलता है...

नए दिन की देहरी पर
नए विश्वास के साथ
चरण धरना है...
आसमान के
सूरज का स्वागत
धरा के अनगिन सूर्यों को करना है...

अपना तेज़
पहचान कर...
अपनी क्षमताओं को
जान कर...

जब हम
सूरज सम
लोककल्यान की खातिर जलेंगे...
तब देखना
नए दिन की आँखों में
सुनहरे स्वप्न पलेंगे...

"सर्वे भवन्तु सुखिनः"
वाली प्रार्थना
फलित हो जायेगी...
सुन्दर है कितनी ये धरा
हम सबके पूण्य प्रताप से
और ललित हो जायेगी...!

-अनुपमा पाठक 

कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...