शनिवार, 21 दिसंबर 2013

मैं सुबह का गीत हूँ।

नए नए विहान में
असीम आसमान में 
        मैं सुबह का गीत हूँ !
मैं गीत की उड़ान हूँ 
मैं गीत की उठान हूँ 
मैं दर्द का उफान हूँ 
        मैं उदय का गीत हूँ 
        मैं विजय का गीत हूँ 
        सुबह-सुबह का गीत हूँ 
        मैं सुबह का गीत हूँ। 
चला रहा हूँ छिप के 
रौशनी के लाल तीर मैं 
जगा रहा हूँ पत्थरों के 
दिल में आज पीर मैं 
        गुदगुदा के फूल को 
        हंसा रहा हूँ आज मैं 
        ये सूना-सूना आसमां 
        बसा रहा हूँ आज मैं 
सघन तिमिर के बाद फिर 
मैं रौशनी का गीत हूँ 
मैं जागरण का गीत हूँ 
मैं सुबह का गीत हूँ। 
        बादलों की ओट से मैं 
        छिप के मुस्कुरा उठूँ 
        मैं ज़मीन से उड़ूँ 
        कि आसमां पे छा उठूँ 
मैं उड़ूँ कि आसमां के 
होश संग उड़ चलें 
मैं मुडूं कि ज़िन्दगी की 
राह संग मुड़ चलें 
        मैं ज़िन्दगी की राह पर 
        मुसाफिरों की जीत हूँ 
        मैं सुबह का गीत हूँ। 
स्वर्ण गीत ले 
विहग कुमार-सा चहक उठूँ 
मैं ख़िज़ाँ की डाल पर 
बहार-सा महक उठूँ 
         कंटकों के बंधनों में 
         फूल का उभार हूँ 
         मैं पीर हूँ, मैं प्यार हूँ 
         बहार हूँ, खुमार हूँ 
भविष्य मैं महान हूँ 
अतीत, वर्तमान हूँ 
मैं युग-युगों का गीत हूँ 
        युग-युगों का गीत हूँ 
        मैं सुबह का गीत हूँ। 

- धर्मवीर भारती  . 

कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...