मेरा चेहरा
अगर नहीं बन पाया मेरा गीत
कुछ नहीं …
चेहरा जिस पर धूल पड़ी है झीनी-झीनी सी
जिसके नीचे आग दबी है नयी रौशनी की
खाकर मार समय की मेरी बोझल पेशानी
अगर नहीं गा पायी मेरी टूटन का संगीत
कुछ नहीं
मेरा गीत न गा पाया यदि दर्द आदमी का
अगर नहीं कर पाया थमे पसीने का टीका
भाषा बोल न पायी हारी-थकी झुर्रियों की
लाख मिले मुझको बाज़ारू जीत
कुछ नहीं
- रमेश रंजक .
अगर नहीं बन पाया मेरा गीत
कुछ नहीं …
चेहरा जिस पर धूल पड़ी है झीनी-झीनी सी
जिसके नीचे आग दबी है नयी रौशनी की
खाकर मार समय की मेरी बोझल पेशानी
अगर नहीं गा पायी मेरी टूटन का संगीत
कुछ नहीं
मेरा गीत न गा पाया यदि दर्द आदमी का
अगर नहीं कर पाया थमे पसीने का टीका
भाषा बोल न पायी हारी-थकी झुर्रियों की
लाख मिले मुझको बाज़ारू जीत
कुछ नहीं
- रमेश रंजक .
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