मै अपने घर की खिड़की से
बरसात को विदा लेते देखती हूँ
एक मौसम आ रहा है
हवाओं में उसकी आहटे सुनती हूँ
बादलो से बिछड़ कर
सूरज भी जैसे बेमन से आता है
कुछ अलग से तेवर दिखाता है
शाम के सुनहरे रंग
पीले पत्तो वाले पेड़ के नीचे
तुम्हे याद करते है मेरे संग
अपनी कहो ...क्या हाल है
'ज़िन्दगी '
पतझड़ तो वहां भी आया होगा
आँखे तुम्हारी नम हुई होंगी ना
जब अकेले बैठ कर
यादों के सूखे पत्तों को जलाया होगा
दूर हूँ तुमसे
बहुत दूर
पर
उन पत्तों की आंच यहाँ तक आती है
आँखों में कई
आशाएं जगाती हैं
तुम आओगे एक बार फिर
हम मिलेंगे
झूठ मूठ के शिकवों के बाद
एक नयी इबारत लिखेंगे
ठंडी हवाएं जब बगैर गुनगुनाये चुप हो जाती है
सच कहूँ
मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है .
जब रात आती है
चांदनी बूंद बूंद बदन पर झरती है
शेवंती और शेफाली की महक मुझे पास बुलाती है
सच कहूँ
मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है ..
राजलक्ष्मी शर्मा.
1 टिप्पणी:
हृदयस्पर्शी भाव!
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