शनिवार, 26 नवंबर 2011

चलो आज व्याख्यान करें...

चलो मन को साफ़ करें
दिन खोल के आज बात करें
अच्छे से शब्दों को चुन के
उनके ताने बाने बुन के
मन को आल्हादित कर दे जो
ऐसा हम कुछ ख़ास करें.


तुमने कई सन्दर्भ दिए हैं
चलो आज व्याख्यान करें...


तुमने कहा साथ निभाने
ख़ुशी के गीत गाने को
उठो ऊँगली पकड़ो
चलने की शुरुआत करें.
तुम वीणा के तारो को छेड़ो
हम अपना स्वर-भाग करें .



तुमने कई सन्दर्भ दिए हैं
चलो आज व्याख्यान करें....


तुमने कहा धरा का चलना
सूरज ढलना किरने पिघलना.
उगते हुए सूरज का
आवाहन करें
पिघली हुयी किरणों को 
जीवनदान करें 
धरती जो धारित करती है
गति को, उसका गान करें.


तुमने कई सन्दर्भ दिए हैं
चलो आज व्याख्यान करें...


तुमने एकाकी सावन औ'
सूने बसंत की बात कही
पतझर मे गिरते पत्ते
और गर्मी देखी उमस भरी.
सावन की बौछारों
बसंत की पीली पीली सरसों 
गर्मी की लम्बी लम्बी
ढलती शामो की बात करें.


तुमने कई सन्दर्भ दिए हैं
चलो आज व्याख्यान करें...


देखा आँखों मे सूनापन 
देखा मन का एकाकीपन
देखा भूला भटका बचपन.
मन का रीतापन 
कभी कोई भर पाया था
भूल गए?झील सी आँखों मे
तुम्हे चाँद नज़र आया था.
बचपन बीता जो हंसी ख़ुशी
चलो उसको याद करें.


तुमने कई सन्दर्भ दिए हैं
चलो आज व्याख्यान करें.
अच्छे से शब्दों को चुन के
उनके ताने बाने बुन के.....




                 - प्रीति .

1 टिप्पणी:

meeta ने कहा…

Very deeply thought and well expressed poem Preeti.Keep it up.

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