रविवार, 20 नवंबर 2011

मुझे जीना सिखाया

ऐ ज़िन्दगी ,
कभी नाराज़ हो कर
शरारतन
चेहरा तकिये में छुपाया ;
पर तेरे क़दमों की आहट ने
मुझे जीना सिखाया .

तुमसे बिना बात के झगड़ों से
हर बार जी कसमसाया ;
सच कहूँ तेरे क़दमों की आहट ने
मुझे जीना सिखाया .


ये भी सोचा अनसुना कर दूँ
कई बार चाहा
कई बार मुंह बनाया ;
सच कहूँ तेरे क़दमों की आहट ने
मुझे जीना सिखाया .


           राजलक्ष्मी शर्मा. 

3 टिप्‍पणियां:

meeta ने कहा…

प्यार का मीठा पहलू . आप की रचनायें मिठास लिए होती हैं :)

अनुपमा पाठक ने कहा…

सुन्दर!

Na ने कहा…

rashmi, we really missed your kadmon ki aahat lately..its exhilarating to hear your resounding footsteps again here

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