बुधवार, 30 नवंबर 2011

हम जब उड़ने जायेंगे

ये परवत और अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
सब की आँखों में हम भले अधूरे हैं,
किन्तु जग को हम सम्पूर्ण बनायेंगे.


लालच करने से हर काम बिगड़ता है,
काम क्रोध में पड़; इंसान झगड़ता है,
इच्छायें जिस दिन काबू हो जायेंगी,
वीर पुरुष उस दिन हम भी कहलायेंगे।


ये परवत और अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.



बस दो पल का ही रंग रूप खिलौना है,
ये ढल जाता है रोना ही रोना है।
छोड़ो इठलाना तुम यौवन पर इतना,
दिन वृद्धावस्था के तुम पर भी आयेंगे।


ये परवत और अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.


नारी पत्नी है पुत्री और माता है,
नारी बिन देखो पग पग सन्नाटा है,
नारी जिस घर में अपमानित होती हो,
देवदूत उसमें कैसे आ पायेंगे?


ये परवत और अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.


इस रुत में होता है पत्ते झड़ जाते हैं,
धीर धरो मौसम आते हैं जाते हैं,
उन्मादों की बेला फिर से आयेगी,
कोंपल फूटेंगी फिर पंछी गायेंगे।


ये परवत और अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.


सब की आँखों में हम भले अधूरे हैं,
किन्तु जग को हम सम्पूर्ण बनायेंगे. 


                        -  इमरान .

कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...