शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

इकारुस




इकारुस
कब तक 
अपने पँख सहलाओगे ...
चाटेगी जब नाकामियों की दीमक 
खुद से बच कर 
तुम किधर जाओगे ?


क्यूँ डरते हो 
कि फिर से तुम जल जाओगे ...
बैठे रहे जो यूँ ही तुम 
जाहिर है ,कि पत्थर में ढल जाओगे .
अपनी पहचान तुम 
खुद ही निगल जाओगे .


सोचोगे जब तुम  
कभी इसके बारे में -
अफ़सोस से ही पिघल जाओगे .


मेरी मानो 
फिर हौसलों के पँख लगाओ 
मैं हाथ बढ़ता हूँ आगे ...
तुम कदम मिलाओ .


चलो 
फिर उड़ चलें 
आकाश में ...
सूरज पीने की 
प्यास में .


             स्कन्द .

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