तुम मेरे पास होते
तो सोचती हूँ मैं ...
इतनी ना होती तनहा
ये धुआं धुआं सी शाम .
ये पीले पीले पत्ते ,
ये ज़र्द चेहरा सूरज ,
ये तल्ख सी हवाएं ,
इनमें भी रंग होता ...
ये भी हसीन लगते .
पर ...
जब कि तुम नहीं हो ,
और ऐसा कुछ नहीं है
जो रौशनी सी भर दे
बेनूर इस फिज़ां में ;
तो ...
मैं भी सोचती हूँ
कि इक ख्वाब ही बुन डालूँ .
जहां शाम के धुएं में ,
तुम हाथ मेरा थामे
मुझे ले चलो कहीं भी
इक अजनबी सफ़र पर .
मीता.
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