शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

ये धुआं धुआं सी शाम .


तुम मेरे पास होते 
तो सोचती हूँ मैं ...
इतनी ना होती तनहा 
ये धुआं धुआं सी शाम .


ये पीले पीले पत्ते ,
ये ज़र्द चेहरा सूरज ,
ये तल्ख सी हवाएं ,
इनमें भी रंग होता ...
ये भी हसीन लगते .



पर ...
जब कि तुम नहीं हो ,
और ऐसा कुछ नहीं है 
जो रौशनी सी भर दे
बेनूर इस फिज़ां में ;
तो ...
मैं भी सोचती हूँ 
कि इक ख्वाब ही बुन डालूँ .


जहां शाम के धुएं में ,
तुम हाथ मेरा थामे 
मुझे ले चलो कहीं भी 
इक अजनबी सफ़र पर .


                       मीता.



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