शनिवार, 10 दिसंबर 2011

शाम का धुआं



एक उदास सा लम्हा
यादों की टहनियों पर
चुपचाप बैठा
मुझे रुलाता है
ये शाम का धुआं
कुछ गुजरा याद दिलाता है



दूर दूर तक फैले
सुनसान पगडंडियों में
इस चट्टान में बैठूं
तो आँखों में उतर जाता है
ये शाम का धुआं
कुछ गुजरा याद दिलाता है


तेरी आरजू में
अकेला पानी में उतरता मेरा अक्स
शाम की धीमी रौशनी में
वजूद की तड़प में
दम तोड़ता साया
आँखों में किरचे सी चुभाता है
ये शाम का धुआं
कुछ गुजरा याद दिलाता है


पहाड़ों की ढलान से
शाम के धुंए में
लम्बे डग भरते उस साये को
कई बार देखा
कभी पहुचता नहीं मुझ तक
दूर से गुजर जाता है
कुछ गुजरा याद दिलाता है


रुसवा होते हम
बेखबर से तुम
बिना कहे यू ही चले जाना
बेसबब आंसुओं का मतलब
लोगों को समझाना
दिल जलाता है
शाम का धुआं
कुछ गुजरा याद दिलाता है .


                     राजलक्ष्मी शर्मा. 

कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...