इतना करीब आ के भी इक फासला रहा
ताउम्र ज़िन्दगी से मुझे ये गिला रहा .
जब हाथ बढ़ाया तो कोई पास नहीं था
कहने को साथ साथ एक काफिला रहा .
तनहाई की हद जानने के बावजूद भी
ऐसा गुमां हुआ है कि कोई बुला रहा .
इक आरजू कि आसमां को बढ़ के चूम लूं
टूटे हुए परों सा एक हौसला रहा .
आँखों में कई ख्वाब टिमटिमाये , बुझ गए
दिल में कोई अँधेरा सा अकसर जला रहा .
कुछ खास तो नहीं रहा साँसों का ये सफ़र
बस धूप और छांह का इक सिलसिला रहा .
- मीता .
1 टिप्पणी:
bheed se ghiraa hoon phir bhee akelaa hoon
har jaan kee yahee kahaanee
saath to hai par saathee nahee
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