रविवार, 18 दिसंबर 2011

आग सी जल उठी मेरे दिल की।

बढ़ गई तिश्नगी मेरे दिल की,
आग सी जल उठी मेरे दिल की।


वस्ल में कशमकश जगा बैठी,
धड़कनें खौलती मेरे दिल की।


फासले थे तो पुरसुकूँ दिल था,
साँस मिल के रुकी मेरे दिल की।



उसकी पलकें हया से हैं झिलमिल,
आज क़ुरबत मिली मेरे दिल की।


कँपकपाते लबों पे नाम आया,
फाख्ता है गली मेरे दिल की।


अब हमें रोकना न मुमकिन है,
धड़कनें कह रही मेरे दिल की।


शम्स दिल में हज़ार जलते हैं,
धूप कैसी खिली मेरे दिल की।


आज घर ताज से भी है उम्दा ,
हमनशीं मिल गई मेरे दिल की।


होश गाफिल हुआ, शबे कुरबत,
आ गई मनचली मेरे दिल की।


आज वो रंजो ग़म से वाबस्ता,
दास्तानें मिटी मेरे दिल की।


फासले कुरबतों में यूं बदले,
मिल गई हर खुशी मेरे दिल की।


                     - इमरान .

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