मानव था
चिरंतन - उन्मुक्त हवा / As free as wind .
मैं जन्मा
बिन गूढ़ कोई, बिन ज्ञान .
सच उन वर्षों में था
जीवन कितना आसान !
ना सोच थी कोई ,
ना कोई समझ थी ,
ना कोई पहचान .
प्यार से जो भी मिलता
लगता एक सामान .
देकर मुझको तुमने नाम
कैसा आंखिर किया ये काम ...
हिन्दू - मुस्लिम में बाँट दिया ,
मंदिर - गिरजों में छाँट दिया .
फैंके रीत -रिवाज के जाल ,
चली जात - पात की चाल ,
अपने रंग में रंगने को
उढाई धर्म की खाल .
जीवन से प्रेम सिखलाया ...
मृत्यु का भय दिखलाया .
नियति को कारक मान
सोच - तर्क को पिघलाया .
भूत गढ़े, भगवान् गढ़े
कर्म- कांड के पाठ पढ़े .
पाप- पुण्य का स्वांग रचा ...
किया वही जो तुम्हें जंचा .
जीवन के रंग दिखाये
जीने के ढंग सिखाये
पर तुम न समझ ये पाए
की साँसों पर पहरे बिठाये
कोई जान कहाँ से लाये ?
नहीं चाहिए नाम तुम्हारा
पहचान ये अपनी रहने दो ...
बस बन कर इंसान मुझे
उन्मुक्त हवा सा बहने दो .
- स्कन्द .
- स्कन्द .
चिरंतन - उन्मुक्त हवा / As free as wind .
( Pic : Painting by Mrs Raina Swaroop
www.reinart.co.in )
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