शनिवार, 24 दिसंबर 2011

उन्मुक्त हवा सा बहने दो

मानव था
मैं जन्मा 
बिन गूढ़ कोई, बिन ज्ञान .
सच उन वर्षों में था 
जीवन कितना आसान !
ना सोच थी कोई ,
ना कोई समझ थी ,
ना कोई पहचान .
प्यार से जो भी मिलता 
लगता एक सामान .

देकर मुझको तुमने नाम 
कैसा आंखिर किया ये काम ...
कि मानव को मुझ से काट दिया ,
हिन्दू - मुस्लिम में बाँट दिया ,
मंदिर - गिरजों में छाँट दिया .

फैंके रीत -रिवाज के जाल ,
चली जात - पात की चाल ,
अपने रंग में रंगने को 
उढाई धर्म की खाल .
जीवन से प्रेम सिखलाया ...
मृत्यु का भय दिखलाया .
नियति को कारक मान  
सोच - तर्क को पिघलाया .
भूत गढ़े, भगवान् गढ़े 
कर्म- कांड के पाठ पढ़े .
पाप- पुण्य का स्वांग रचा ...
किया वही जो तुम्हें जंचा .

जीवन के रंग दिखाये 
जीने के ढंग सिखाये 
पर तुम न समझ ये पाए 
की साँसों पर पहरे बिठाये 
कोई जान कहाँ से लाये ?

नहीं चाहिए नाम तुम्हारा 
पहचान ये अपनी रहने दो ...
बस बन कर इंसान मुझे 
उन्मुक्त हवा सा बहने दो .

                                         - स्कन्द .


चिरंतन - उन्मुक्त हवा / As free as wind .
( Pic : Painting by Mrs Raina Swaroop
www.reinart.co.in )


________________________________________________________________________

कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...