धुंधलाई सी यादों की
तसवीरें हैं कुछ मुड़ी-तुड़ी .
धूप ज़रा सी , छांह ज़रा सी
चंद खुशबुएँ उडी उडी ,
बचपन के वो खेल खिलौने ,
भूले बिसरे गाने हैं ...
मीठी सी कुछ मुस्कानें हैं ,
कुछ बेनाम खजाने हैं .
प्यारे से चेहरे भी हैं
जो कहाँ न जाने छूट गए .
एक दो सपने -
जिनके पर उड़ने से पहले टूट गए .
जाने क्या है इनमें ऐसा
अब भी इन्हें सम्हाल रखा है ...
मैंने इन्हें सहेज के
इक छोटे बक्से में डाल रखा है .
मन के गलियारे से गुजरूँ
तो आता है वो तहखाना ...
जहाँ छुपा कर रखा हुआ है
मैंने एक संदूक पुराना .
अक्सर उसे खोलती हूँ मैं
जब भी तनहा होती हूँ ,
छू कर उन बीते लम्हों को
कुछ हंसती , कुछ रोती हूँ .
दो पल उनके साथ बिताना
इतना अच्छा लगता है !!
झूठे जग में यही खज़ाना
मन को सच्चा लगता है .
एक दिन तुम भी ऐसा करना
मन के गलियारों में जाना ...
ढूंढो...शायद वहां मिलेगा
तुमको भी संदूक पुराना .
- मीता .
चिरंतन - मन के गलियारे / Corridors of heart .
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