शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

मन का गलियारा ..

अक्सर मन के गलियारों में
कुछ पल कैद हो जाते हैं
स्व इच्छा से ..


बेशकीमती पल
जिद्दी पल
ख़ामोशी के पल
खुलूस के पल
फिर चाहे बाहर कितना भी शोर हो
खीच लेते है आपको
अपनी तरफ . 



आप भी
उन बंद दरवाजों के पीछे पहुच कर
जी लेते है एक उम्र ...
ऐसा ही कुछ
वो नए साल का पहला दिन था
एक अनगढ़ हाथ के बने
उस अधजले और कच्चे पक्के केक
के साथ
जो हमने उस टिब्बे पर गुजारी थी .


इतनी ख़ामोशी से
नया साल आते मैंने पहली बार देखा था
फिर घर जाकर भी नींद नहीं आयी
जैसे एक एक पल समेट रही थी स्मृति वन में
अनोखा इतना अनोखा
कि बस ज़हन में बस गया .


आज भी शोर शराबे के बीच
वो पल
मेरा हाथ साधिकार खीच लेता है
और ले जाता है वहीँ
मन के गलियारों में....
जहाँ
चारों ओर का शोर गुम हो जाता है
..रह जाते हैं
मै, तुम और वही अहसास .


                  राजलक्ष्मी शर्मा. 

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