तुझे छूकर के ये जाना
हूँ कितना दूर मैं तुझसे
ये तेरी आँखें बताती है
हैं कितने फासले मुझसे
मेरी उँगलियों का जादू
है तुझ पर नहीं चलता ...
मिलती हैं तो बस साँसें
तेरे मिजाज़ की ठंडक
सच,मुझको जमाती है
तुझे बाँहों में ले कर भी
कहाँ अब नीद आती है .
तेरे ये होंठ सौतेले
क्योँ पतझड़ बुलाते हैं ...
मैं जब नजदीक आता हूँ
क्योँ मुझ से दूर जाते हैं .
टीस बन खुशबू तेरी
मुझ में समाई है
ये एहसास देती है
तू अब है पराई है .
जुड़े जुड़े से जिस्म हैं
पर बात अधूरी है ,
है रूह जुदा जुदा
कितनी ये दूरी है .
जा लौट जा अपने
अपने दायरों में तू ...
जहाँ तुझको गले लगाये
फिर जीने की आरज़ू .
जहाँ हो ना कोई बंधन
जहाँ रूह को चैन मिले .
शीशे में खड़ा वो अक्स
जहाँ ना बेचैन मिले .
न होगा भरम मुझको
कि कितने पास है तू .
मना लूँगा मैं खुद को
कि बस एहसास है तू .
फासले रह भी जायेगे
फासले मिट भी जायेंगे
जिस्म जुदा हो भी तो क्या
हम रूह से मिल पाएंगे
न तुझको छू सकूँगा मैं
न दूरी का एहसास होगा
रहमत बन तेरा अक्स
जो मेरे जो पास होगा
- स्कन्द .
PIC : Mrs Reina Swaroop
/www.reinart.co.in
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