सोमवार, 26 दिसंबर 2011

चंचल हवा

नदी का किनारा , तुम और मैं  ,
आवारा बादल और रिमझिम समा
जाने कहाँ से ये चंचल हवा 
आती है 
छू कर 
बीच से हमारे गुज़र जाती है ...


लहरा जाती है आँचल मेरा ...
बिखरा देती है काजल मेरा 
मेरे गेसुओं को सहला कर 
गजरे के फूलों को बिखरा कर 
गुनगुनाती हुई 
जाती है गुज़र .



पानी में हलचल करके 
छोड़ जाती है अपनी खनक 
फैला कर फूलों कि खुशबू 
दे जाती है अपनी महक ...


आती कहाँ से है जाने ...
जाती है कहाँ को ?
छू जाती है सभी को .
और 
जाते जाते प्रेरित करती है हमें 
हमेशा चलते रहने को .


              -  शैल सुमन .

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