शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

उड़ान .


तुम में , 
मुझ में ...
एक आसमान है 
धूप से भरा !
चलो ,
आज फैला कर पंख 
उड़ते हैं उस में .

जानते हो ,
बादलों में से गुजरें 
तो रूह तक 
एक ठंडक भर जाती है .
और बूँदें पानी की 
टिक जाती हैं जिस्म पर ...
जैसे ओस हो फूलों पर .


देखो ना  
ये नन्ही चिड़िया ,
हमने इसे कैसे चौंका दिया !!


चलो खुल कर हँसते हैं ...
हवा में झूलते हैं .

नीचे झांको ,
देखो तो...
कितनी दूर निकल आये हैं 
हम ज़मीन से ;
जहाँ धूप बमुश्किल पहुँचती है !!

पर लौटेंगे वापस ,
ज़मीन पर ही .
आसमान  ...
केवल पंखों के लिए होते हैं .
पैर तो ज़मीन मांगते हैं .

लेकिन ,
अभी हम इस बारे में क्यों सोचें .

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