सारे मज़े मिले मुझे ऊंची उड़ान में ,
छूटी हुई मिटटी की महकार के सिवा ...
क्यों न हम चलें एक ऐसी उड़ान पर , जो हमें क्षितिज के पार तो ले चले पर मिटटी की सौंधी महक से दूर नहीं .
ऐसा कौन है जो ख्यालों के पंख लगा कर कभी उड़ा नहीं ? ये जादुई पंख हम सब के पास हैं , जो हमें ले जाते हैं बादलों के पार ... इन्द्रधनुषी दुनिया में ...हकीकत की ज़मीं से कोसों दूर . जब हम लिखते हैं या कोई चित्र बनाते हैं ...तब हम भरते हैं कल्पना की उड़ान . कभी कभी ख्वाबों की दुनिया से रूबरू होना अपने आप में एक खूबसूरत एहसास है. उड़ान हौसलों की भी होती है , और उम्मीदों की भी .
तो चलिए अपने पंख फैलाएं ...
मीता.
________________________________________________
इकारुस .
इकारुस
कब तक
कब तक
अपने पँख सहलाओगे ...
चाटेगी जब नाकामियों की दीमक
खुद से बच कर
तुम किधर जाओगे ?
क्यूँ डरते हो
कि फिर से तुम जल जाओगे ...
बैठे रहे जो यूँ ही तुम
जाहिर है , कि पत्थर में ढल जाओगे .
अपनी पहचान तुम
खुद ही निगल जाओगे .
सोचोगे जब तुम
कभी इसके बारे में -
अफ़सोस से ही पिघल जाओगे
मेरी मानो
फिर हौसलों के पँख लगाओ .
मैं हाथ बढ़ता हूँ आगे ...
तुम कदम मिलाओ .
चलो
फिर उड़ चलें
आकाश में ...
सूरज पीने की
प्यास में .
- स्कन्द .
_______________________________________________
उड़ते रहना .
रात एक करवट और ले चुकी थी
खट खट - खट खट जाने किसने
दस्तक दी थी पलकों पर...
उठ कर देखा तो
आँखों के आगे, पलकों के दरवाज़े पर
एक ख्वाब खड़ा था ,
और चोट लगी थी ख्वाब को एक...
पहली परवाज़ में लड़खड़ा कर गिरा था वो
और लंगड़ाते लंगड़ाते पहुंचा था फिर मेरे पास
के मैं इस पर हिम्मत की हल्दी मल दूं
हौसले की पट्टियों से सारे इसके घाव भर दूं
जान फूँक दू फिर इसके पंखों में
आँखों में फिर उड़ने के सपने भर दूं ...
पंख भले ही टूट गए थे
उम्मीद नहीं टूटी थी पर
पलकों के दरवाज़े पर एक ख्वाब खड़ा था
और चोट लगी थी ख्वाब को एक....
ज़िन्दगी में कई मर्तबा
हम उड़ने से पहले ही गिर जाते हैं ,
ख्वाब हमारे यूँही
पलकों की बरसातों में बह जाते हैं...
चोट लगे तो फिर उड़ना तुम
ख्वाबों के भी घाव सुना है भर जाते हैं
नए परिंदे भी तो आसमान में उड़ जाते हैं
ख्वाबो को बहने मत देना
उड़ते रहना... उड़ते रहना...
- देव .
________________________________________________
हम जब उड़ने जायेंगे.
ये परवत , ये अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
सब की आँखों में हम भले अधूरे हैं,
किन्तु जग को हम सम्पूर्ण बनायेंगे.
लालच करने से हर काम बिगड़ता है,
काम क्रोध में पड़; इंसान झगड़ता है,
इच्छायें जिस दिन काबू हो जायेंगी,
वीर पुरुष उस दिन हम भी कहलायेंगे।
ये परवत , ये अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
बस दो पल का ही रंग रूप खिलौना है,
ये ढल जाता है , रोना ही रोना है।
छोड़ो इठलाना तुम यौवन पर इतना,
दिन वृद्धावस्था के तुम पर भी आयेंगे।
ये परवत , ये अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
नारी पत्नी है पुत्री और माता है,
नारी बिन देखो पग पग सन्नाटा है,
नारी जिस घर में अपमानित होती हो,
देवदूत उसमें कैसे आ पायेंगे ?
ये परवत , ये अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
इस रुत में होता है पत्ते झड़ जाते हैं,
धीर धरो मौसम आते हैं जाते हैं,
उन्मादों की बेला फिर से आयेगी,
कोंपल फूटेंगी फिर पंछी गायेंगे।
ये परवत , ये अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
सब की आँखों में हम भले अधूरे हैं,
किन्तु जग को हम सम्पूर्ण बनायेंगे.
- इमरान .
________________________________________________
असीमित आसमान .
असीमित आसमान
ख्वाबों की उड़ान .
अम्बर के मण्डप के नीचे..
धरती का कालीन बिछाकर
तारों की ओदनी ओढ़े..
वो ख्वाबों की कश्ती में हिचकोले खाना
रहनुमा बन हवा संग वो आंचल लहराना
बोछार से बचाना..आंचल को ही छाता बनाना
मासूम भूलों को इतिहास बनाना
वो डांट कर रुलाना..
फिर चेहरे पर हाथ रख..
मोहवश बुलाना..
जैसे दीपक की ज्योति को हवा से बचाना .
माजरा क्या है मुझे फिर समझाना .
वो कौड़ी भी जोड़े मेरी ही खातिर
बचपन की मदहोशी..उसे झूठी बुलाये
लगता था ऐसा वो माह्सूल कमाए
हर कौड़ी को अपनी एहतियाज बताये
हुआ बड़ा फिर भी..उसका लाल ही था मैं..
ता'ईद था उसका तो खड़ा था मैं
तबस्सुम उसकी मुझे बड़ा कर गयी
जाने क्यूँ मेरे तोहफे से पहले..वो रूह हो गयी
भूली रास्ता जो कश्ती..अब ख्वाब हो गयी
उस कश्ती को पाना..मेरी उड़ान हो गयी
आज भी अम्बर के मण्डप के नीचे..
धरती का कालीन बिछाकर
तारों की ओढ़नी ओढ़े बैठा हूँ..
माँ को देख..
फिर वो ही ख्वाबों की उड़ान भर रहा हूँ..!!
माह्सूल - revenue .
एहतियाज - need .
ता'ईद - support .
- सुमित उप्रेती .
_________________________________________________
उड़ान .
देखो ना
चलो खुल कर हँसते हैं ...
- स्कन्द .
_______________________________________________
उड़ते रहना .
रात एक करवट और ले चुकी थी
खट खट - खट खट जाने किसने
दस्तक दी थी पलकों पर...
उठ कर देखा तो
आँखों के आगे, पलकों के दरवाज़े पर
एक ख्वाब खड़ा था ,
और चोट लगी थी ख्वाब को एक...
पहली परवाज़ में लड़खड़ा कर गिरा था वो
और लंगड़ाते लंगड़ाते पहुंचा था फिर मेरे पास
के मैं इस पर हिम्मत की हल्दी मल दूं
हौसले की पट्टियों से सारे इसके घाव भर दूं
जान फूँक दू फिर इसके पंखों में
आँखों में फिर उड़ने के सपने भर दूं ...
पंख भले ही टूट गए थे
उम्मीद नहीं टूटी थी पर
पलकों के दरवाज़े पर एक ख्वाब खड़ा था
और चोट लगी थी ख्वाब को एक....
ज़िन्दगी में कई मर्तबा
हम उड़ने से पहले ही गिर जाते हैं ,
ख्वाब हमारे यूँही
पलकों की बरसातों में बह जाते हैं...
चोट लगे तो फिर उड़ना तुम
ख्वाबों के भी घाव सुना है भर जाते हैं
नए परिंदे भी तो आसमान में उड़ जाते हैं
ख्वाबो को बहने मत देना
उड़ते रहना... उड़ते रहना...
- देव .
________________________________________________
हम जब उड़ने जायेंगे.
ये परवत , ये अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
सब की आँखों में हम भले अधूरे हैं,
किन्तु जग को हम सम्पूर्ण बनायेंगे.
लालच करने से हर काम बिगड़ता है,
काम क्रोध में पड़; इंसान झगड़ता है,
इच्छायें जिस दिन काबू हो जायेंगी,
वीर पुरुष उस दिन हम भी कहलायेंगे।
ये परवत , ये अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
बस दो पल का ही रंग रूप खिलौना है,
ये ढल जाता है , रोना ही रोना है।
छोड़ो इठलाना तुम यौवन पर इतना,
दिन वृद्धावस्था के तुम पर भी आयेंगे।
ये परवत , ये अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
नारी पत्नी है पुत्री और माता है,
नारी बिन देखो पग पग सन्नाटा है,
नारी जिस घर में अपमानित होती हो,
देवदूत उसमें कैसे आ पायेंगे ?
ये परवत , ये अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
इस रुत में होता है पत्ते झड़ जाते हैं,
धीर धरो मौसम आते हैं जाते हैं,
उन्मादों की बेला फिर से आयेगी,
कोंपल फूटेंगी फिर पंछी गायेंगे।
ये परवत , ये अम्बर शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
सब की आँखों में हम भले अधूरे हैं,
किन्तु जग को हम सम्पूर्ण बनायेंगे.
- इमरान .
________________________________________________
असीमित आसमान .
और हौसले की उड़ान ,
बिखेर सकूँ
हर ओर सवेरा ,
खुशियाँ और मुस्कान .
छोटी सी चिड़िया है ,
छोटे से बच्चे .
छोटे से पंख ...
छोटे अरमान .
ईश्वर सबको देता है
उड़ने का माद्दा ,
बस मन में
जो ले ये ठान .
उड़ने को आगे है
खुला आसमान .
मुश्किलें है थोड़ी ,
हल नहीं आसान .
इरादों में भरनी है
थोड़ी सी जान .
छोटे से पंखों में
भर के तूफ़ान ...
उडनी है उनको
ऊंची उड़ान .
उन्हें जीतना है
सारा जहान ;
और असीमित आसमान !!
- रश्मि प्रिया .
________________________________________________
FLIGHT OF FANTASY.
I was the mountain bluebird tonight
बिखेर सकूँ
हर ओर सवेरा ,
खुशियाँ और मुस्कान .
छोटी सी चिड़िया है ,
छोटे से बच्चे .
छोटे से पंख ...
छोटे अरमान .
ईश्वर सबको देता है
उड़ने का माद्दा ,
बस मन में
जो ले ये ठान .
उड़ने को आगे है
खुला आसमान .
मुश्किलें है थोड़ी ,
हल नहीं आसान .
इरादों में भरनी है
थोड़ी सी जान .
छोटे से पंखों में
भर के तूफ़ान ...
उडनी है उनको
ऊंची उड़ान .
उन्हें जीतना है
सारा जहान ;
और असीमित आसमान !!
- रश्मि प्रिया .
________________________________________________
FLIGHT OF FANTASY.
I was the mountain bluebird tonight
As evening darkened, I shod my blue attire
Bartered it for your brilliant hue,
And the tiny white crest
Your power of flight,
On my borrowed time
Darkness propels me forward
In my maiden journey
As I soar across the skies
My reflection lost in the blue sea
Will I make it before sunrise?
To rest in that tiny mango grove
A tiny frame, powered by visions of loved ones
A doubt suddenly arrests the ascent
Will they see me for what I am?
No meeting for years, changed exteriors
But the same soul,
Through infinite lives
There lies my destination,
Nestled under the Blue Mountains
In the crimson and blue hibiscus bush
The rays of the rising sun lighting up
Those eyes that are windows to the soul
The moment of recognition
The eyes that remain same in each lifetime
Yes, my worries were in vain!
We didn’t walk past each other
You were waiting at the end
Of my flight of fantasy!
- Sadhana .
----------------------------------------------------------------------
- Sadhana .
----------------------------------------------------------------------
ख्वाबों की उड़ान .
अम्बर के मण्डप के नीचे..
धरती का कालीन बिछाकर
तारों की ओदनी ओढ़े..
वो ख्वाबों की कश्ती में हिचकोले खाना
रहनुमा बन हवा संग वो आंचल लहराना
बोछार से बचाना..आंचल को ही छाता बनाना
मासूम भूलों को इतिहास बनाना
वो डांट कर रुलाना..
फिर चेहरे पर हाथ रख..
मोहवश बुलाना..
जैसे दीपक की ज्योति को हवा से बचाना .
माजरा क्या है मुझे फिर समझाना .
वो कौड़ी भी जोड़े मेरी ही खातिर
बचपन की मदहोशी..उसे झूठी बुलाये
लगता था ऐसा वो माह्सूल कमाए
हर कौड़ी को अपनी एहतियाज बताये
हुआ बड़ा फिर भी..उसका लाल ही था मैं..
ता'ईद था उसका तो खड़ा था मैं
तबस्सुम उसकी मुझे बड़ा कर गयी
जाने क्यूँ मेरे तोहफे से पहले..वो रूह हो गयी
भूली रास्ता जो कश्ती..अब ख्वाब हो गयी
उस कश्ती को पाना..मेरी उड़ान हो गयी
आज भी अम्बर के मण्डप के नीचे..
धरती का कालीन बिछाकर
तारों की ओढ़नी ओढ़े बैठा हूँ..
माँ को देख..
फिर वो ही ख्वाबों की उड़ान भर रहा हूँ..!!
माह्सूल - revenue .
एहतियाज - need .
ता'ईद - support .
- सुमित उप्रेती .
_________________________________________________
एक आसमान है
धूप से भरा !
चलो ,
आज फैला कर पंख ...
उड़ते हैं उस में .
जानते हो ,
बादलों में से गुजरें
तो रूह तक
एक ठंडक भर जाती है .
और बूँदें पानी की
टिक जाती हैं जिस्म पर
जैसे ओस हो फूलों पर .
देखो ना
ये नन्ही चिड़िया ,
हमने इसे कैसे चौंका दिया !!
चलो खुल कर हँसते हैं ...
हवा में झूलते हैं .
नीचे झांको ,
देखो तो
देखो तो
कितनी दूर निकल आये हैं
हम ज़मीन से ;
जहाँ धूप बमुश्किल पहुँचती है !!
पर लौटेंगे वापस ,
ज़मीन पर ही .
ज़मीन पर ही .
आसमान ...
केवल पंखों के लिए होते हैं .
पैर तो ज़मीन मांगते हैं .
लेकिन ,
अभी हम इस बारे में क्यों सोचें .
- मीता .
_________________________________________________
- मीता .
_________________________________________________
साइबेरियन सारस की उड़ान .
भरतपुर के जंगलों में
बर्ड सैंक्चुरी कहते हैं जिसे...
जब सर्दियों की आहट पर
नन्ही कोपलें पत्तियों के कम्बलों से झांकती हैं
कसमसा कर ओस की बूंदों में नहाया करती हैं
बड़ के पेड़ों से झांकते धूप के टुकड़ों में
मासूम सर्दियाँ अंगड़ाई लेती हैं...
और इसी मौसम में वो हर साल आते हैं यहाँ
...साइबेरियन सारस...
मीलों की दूरी
दो पंखों से तय करके
हर साल
कैसे आ जाते हैं यह सारस यहाँ...
और आ कर लिपट जाते हैं इसी मिट्टी से
अपने पंखों में समेट लेते हैं यह सूरज
अपने जंगल से लिपट जाते हैं
यह सारस, अपनी उड़ान से हर बरस,
अपनों से मिलने आते हैं...
मैं भी तो यहीं रहता हूँ
और मेरे अपने भी
पर मुद्दतें हुई
मैं कभी उड़ कर उनकी ठौर न पहुंचा
मैं सर्दियों में उनकी नर्म धूप से कहाँ लिपट पाया
मैं अपने घोंसले को छोड़
कभी नहीं उड़ पाया...
साइबेरियन सारस...
मुझको भी यह उड़ान सिखला दो
मेरे पंखों में भी
अपनी सी मोहब्बत भर डालो...
- देव .
______________________________________________
तेरी उड़ान .
मत देख परिंदों को आकाश में उड़ते
उड़ना ही उनकी जिंदगी
आकाश ही पहचान है .
तू कर ले कितनी भी कोशिश
आजाद तू उड़ न पायेगा .
किसी सद्दी से , किसी मंझे से
बंधा तू खुद को पायेगा .
जिसके हाथों में होगी डोर
तुझको वही उडाएगा
ढील हो कितनी भी तुझको चाहे
आकाश तू छू न पायेगा ...
टूट पड़ेगी डोर वो कच्ची
गर ज्यादा जोर लगाएगा
भटकेगा कुछ देर हवा में
फिर लौट के नीचे आयेगा
तू कर ले कितनी भी कोशिश
आजाद तू उड़ न पायेगा ...
मत देख परिंदों को आकाश में उड़ते
उनकी फितरत में उड़ान है
उड़ना ही उनकी जिंदगी
आकाश ही पहचान है
उड़ना है जो तुझको ऊंचा
सर झुका ,
खुद को पहचान .
हर शै में तेरे खुदा बसा है
इसीलिए तू है इंसान .
दर्द बाँट ले , दुआ बटोर
हाथ बढा तू सब की ओर ...
नेकी की तू फसल लगा
कभी किसी के काम तो आ .
तब पायेगा तू अंजाम
सूरज सा ऊंचा होगा नाम
देख सूरज को आकाश में चमकते
और उसके नूर का हिस्सा बन जा ...
फैला इल्म की नेमत हर सू
और तू भी किस्सा बन जा .
क़यामत तक
जिन्दा रहेगी तेरी पहचान .
ऐसे होगी तेरी उड़ान .
- स्कन्द .
- स्कन्द .
________________________________________________
11 टिप्पणियां:
उड़ान की सार्थकता तभी है जब नाप तो आये आसमान और धरती से रिश्ता भी प्रगाढ़ से प्रगाढ़तम होता जाये... हर उड़ान धरती के और करीब ले आये... वैसे ही जैसे कविता जो हर बार जब लिखी और पढ़ी जाती है... जीवन के और करीब ले आती है!!!
इस अंक की सभी रचनायें सुन्दर हैं... कितने और कैसे कैसे उड़ान! सभी रचनाकारों को बधाई!!!
meeta,ur introductions r gettin to b more amazing wid every new issue...;)...the compositions this tym r actually lyk a "dream",almost surreal...thr r such beautiful lines tht r stuck in the heart,"कब तक
अपने पँख सहलाओगे ...
चाटेगी जब नाकामियों की दीमक
खुद से बच कर
तुम किधर जाओगे?"
"चोट लगे तो फिर उड़ना तुम
ख्वाबों के भी घाव सुना है भर जाते हैं
नए परिंदे भी तो आसमान में उड़ जाते हैं"
"सब की आँखों में हम भले अधूरे हैं,
किन्तु जग को हम सम्पूर्ण बनायेंगे"
"छोटे से पंखों में
भर के तूफ़ान ...
उडनी है उनको
ऊंची उड़ान"
"Yes, my worries were in vain!
We didn’t walk past each other
You were waiting at the end
Of my flight of fantasy! "
"भूली रास्ता जो कश्ती..अब ख्वाब हो गयी
उस कश्ती को पाना..मेरी उड़ान हो गयी"
"
जानते हो ,
बादलों में से गुजरें
तो रूह तक
एक ठंडक भर जाती है .
और बूँदें पानी की
टिक जाती हैं जिस्म पर
जैसे ओस हो फूलों पर"
"उड़ना है जो तुझको ऊंचा
सर झुका ,
खुद को पहचान"
my compliments to devesh ji 4 "Siberian saaras ki udaan"...thr isnt a single word tht doesnt go straight to the heart...fantasies r lyk birds when thy find wings n r fulfilled..r everyday wishes r lyk glow worms here,there,everywhr....n thy r lyk the moth whn thy r unreasonabl n burn thmselves out...but ne vich way thy light up r lives...:)
"be lagaam udti hain kuch khwaahishein aisay dil mein...'mexican' filmon mein kuch daudtay ghoday jaisay.....thaan par baandhi nahin jaateein sabhi khwaahishein mujh se"-Gulzar
@अनुपमा जी बहुत ही खूबसूरत टिप्पिणी है . " उड़ान की सार्थकता तभी है जब नाप तो आये आसमान , और धरती से रिश्ता भी प्रगाढ़ से प्रगाढ़तम होता जाये... हर उड़ान धरती के और करीब ले आये..." सच कहा आपने . धन्यवाद !!
@लीना आप जिस गहराई से हम सब को पढ़ती हैं और हर एक को भरपूर सराहना देती हैं , हम दिल से आपके आभारी हैं . हर लेखक चाहता है कि उसे इतने अच्छे पाठक मिलें . हमेशा हमें इसी तरह पढियेगा और अपनी टिप्पिणी के द्वारा चिरंतन कि इस यात्रा का अटूट हिस्सा बने रहिएगा .
बहुत ऊँची उडान भरी है ,आप सभी को बधाई
While reading the poems, I was flying !Beautiful bluebird's flight through the night captured my imagination.Siberain cranes are the most awaited guests every winter,Sariska bird sanctury is feeling the heat of global warming.
Spectacular effort !
Seema
kya kahu , kya na kahu
isme hi ulajh gya hu
shabdh nahi milte bayan kya karu
motion si yeh jot hai
roshan ho rahi meri rooh ki dor hai ...
lajawab .......
kash me bhi iska ek ang hota ... :)
.
एक साथ इतनी ख़ूबसूरत रचनाएं ! आनंद आ गया …
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई!!!
…लेकिन सभी रचनाएं एक साथ न हो'कर अलग अलग पोस्ट में आतीं तो सब पर कुछ विस्तृत प्रतिक्रिया दी जा सकती थी …
…लेकिन साथ ही यह भी संभव था कि हर पोस्ट पर पहुंच नहीं पाते तो इन सुंदर रचनाओं में से किसी से वंचित भी रहने की संभावना रहती …
लेकिन , आइंदा ऐसी पोस्ट होने की स्थिति में रचनाकारों का संक्षिप्त परिचय साथ में मेल आईडी / मोबाइल नं / ब्लॉग का लिंक भी दिया करें , कृपया !
पुनः साधुवाद ! मंगलकामनाएं !
@रीना जी! आपका हार्दिक धन्यवाद .आपकी टिपण्णी से मन आनंदित है..:)
@seema jee! about your valuable comments we feel that we are in sky.... your words really increased our enthusiasm.. our veins got movement of energy and new inspiration .... Look forward to your further comments ...:)
@VinMet जी... अपने कुछ न कहते हुए भी इतना कुछ कह दिया के हमारा हृदय गदगद है ...:)
@राजेंद्र स्वर्णकार जी! आपकी टिपण्णी और हौसलाअफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद .... किसी रचनाकार विशेष पर टिपण्णी करने के लिए दायीं तरफ रचनाकारों के नाम लेबल के रूप में प्रदर्शित हैं .. क्लिक करने पर आप रचना विशेष पर टिपण्णी कर सकते हैं.... आपकी बहुमूल्य टिपण्णी और सुझाव के लिए पुनः कोटिशः आभार .. आशा है आगे भी आप इसी तरह हमारा उत्साहवर्धन करेंगे......
............सादर .... चिरंतन
http://yatraantermanki.blogspot.com/
Behtarin rachna. Badhiya post.
@Anupama Ji - Thank you for appreciating the real meaning of UDAAN and encouraging us so well each time.
@Leena Ji- As soon as we publish I start looking forward to your insightful comments-This time it felt ike a long wait to read you.Please keep on reading and helping us achieve better standards
@Reena Ji - Being our regular reader , we really apppreciate your liking us.Thanks
@Seema Ji - We are so glad to be able to take you on a flight with us.Please keep reading and encouraging us
@Rajendra ji- Thanks you for your suggestion.
Please keep on reading as we try to incorporate them into Chirantan
@VinMet ji--Thanks for dropping by
@Gopal Ji-- Thank you .We hope you will continue to read the future issues too
एक टिप्पणी भेजें