सूने सूखे उपवन फिर महकाये हमने,
मन के गलियारों में दीप जलाये हमने।
क्या रक्खा था ऐसे मर मर के जीने में,
हर दिन पीड़ाओं की नदिया को पीने में।
अब वो बीत गये दिन आँखों में था पानी,
दूर गई वो रैना जब नीर बहाये हमने।
मन के गलियारों में दीप जलाये हमने।
औरों को तड़पाना खुद को भी सिसकाना,
छोड़ दिया है हमने दुख के गान सुनाना।
अब तो बस महफिल में मीठी बातें होंगी,
आनंदों के चुनकर गीत बनाये हमने।
मन के गलियारों में दीप जलाये हमने।
जटिल कुटिल लोगों से मेरा हाथ छुड़ाया,
नित जीवन में ज्ञानी लोगों को लेकर आया।
ईश्वर ने राह दिखाई तो कलियां मुस्काई,
कितने प्यारे प्यारे मीत बनाये हमने।
मन के गलियारों में दीप जलाये हमने।
- इमरान .
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